Saturday 17 December 2011
Sunday 14 August 2011
रेखांकन- पंचतत्त्व शिवलिंग, गाँती, पानपत्ती
पंचतत्त्व-शिवलिंग (रेखांकन-2007)--भूमि,जल,अग्नि,वायु और आकाश के ज्यामितिक आकारों को जब एक साथ संयोजित किया जाता है, क्रमशः कुल पाँचों आकार मिलकर शिवलिंग का आकार बन जाता है। इस रेखांकन में स्पष्ट दे जा सकता है।
गाँती-धोंधा (रेखांकन-1979)-- भोजपुरीभाषी क्षेत्र में जड़े के दिनों में जब धान कट जाता है और गन्ने की पेराई होती है, ठीक उन्हीं दिनों मकर संक्रान्ति के अवसर पर गुड़ के पाग में भुने हुए चावल के धोंधे बनाए जाते है। जड़े के कारण गाँती बाँधे हुए बच्चे धोंधा खाते देखे जाते हैं। गाँती गात्रिका शब्द का भोजपुरी उच्चारण है। गाँती बहुत पुराना पहरावा है,यह भारत में ही नहीं, युनान में भी प्रचलित था। गाती और धोंधा अब लुप्त होने लगा है। कृषि संस्कृति का यह आहार और पहरावा सरलता के कारण संरक्षणीय है।
गाँती-धोंधा (रेखांकन-1979)-- भोजपुरीभाषी क्षेत्र में जड़े के दिनों में जब धान कट जाता है और गन्ने की पेराई होती है, ठीक उन्हीं दिनों मकर संक्रान्ति के अवसर पर गुड़ के पाग में भुने हुए चावल के धोंधे बनाए जाते है। जड़े के कारण गाँती बाँधे हुए बच्चे धोंधा खाते देखे जाते हैं। गाँती गात्रिका शब्द का भोजपुरी उच्चारण है। गाँती बहुत पुराना पहरावा है,यह भारत में ही नहीं, युनान में भी प्रचलित था। गाती और धोंधा अब लुप्त होने लगा है। कृषि संस्कृति का यह आहार और पहरावा सरलता के कारण संरक्षणीय है।
पानापती (रेखांकन-1988)-- पेंड़-पौधों-लताओं फूलों-पत्तियों में भी आकर्षक रूप होता है। वही आकार यदि मानुषी रूप की आकृति बने तो उसका आकर्षण बहुत ही सहज हो सकता है। इसकी एक बानगी ।
पेड-पत्थर-प्रिया रेखांकन
रेखांकन (1999)-- पेड़,पत्थर और प्रिया- इन तीन वस्तुओं को कला भाषा बनाते हुए यह ध्यान रखा गया है कि पत्थर जड़ है,पेड़ स्थावर है और प्रिया जंगम। तीन अवस्थाओं की वस्तुओं में एक सृजनकारी लय जब क्रियाशील होता है, विविध छटाओं की कला रच जाती है।
नदीतमे(रेखांकन-1999)-- पेड़,पत्थर और प्रिया की इस रचना में प्रिया नदी होती है। पेड़ और पत्थर झंकृत होते हुए दुखते है।
नमः प्रकृत्यै(रेखांकन-1992)-- प्रकृति को सौंदर्य से भरी हुई दैवीय सत्ता के रूप में, माँ के रूप में और विविध रूपों में देखा गया है।
रेखांकन-(1988)- वानस्पतिक सौंदर्य में मानुषी रूप को खिला दिखाने के प्रयास को रेखाओं का राग कहा जाना चाहिए।
रेखांकन-(1988)--पेड़ और उसे देखनेवाले के बीच का खाली आकाश भी आकार लेता होगा। जब वह आकार लेता होगा तो वह उसका इच्छित आकार ही होता होगा।
Saturday 13 August 2011
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